भगवान अयप्पा : उत्पत्ति से लेकर सबरीमाला मंदिर तक, जानिए अद्भुत ऐतिहासिक तथ्य !

कहते हैं कि भगवान शिव के कई पुत्र थे, जैसे गणेश, कार्तिकेय, सुकेश, जलंधर, भौम आदि। उन्हीं में से एक अयप्पा स्वामी भी थे। अयप्पा स्वामी के जन्म की कथा बड़ी ही रोचक है। केरल के सबरीमाला में भगवान अयप्पा स्वामी का प्रसिद्ध मंदिर है जहां लाखों लोग उनके दर्शन करने के लिए आते हैं।
पौराणिक इतिहास स्वामी अयप्पा की कहानी पर प्रकाश डालता है। कहते है देवी दुर्गा द्वारा महिषासुर वध के पश्चात ‘महिषी’ नामक दानवी अपने भाई की मृत्यु का प्रतिशोध लेने के लिए आतुर हो गई। महिषी ने घोर तपस्या करके ब्रह्मा जी से वरदान माँगा कि उसे केवल शिव व विष्णु के संयोग से उत्पन्न हुआ पुत्र ही मार सके। अतः महिषी के अत्याचारों से संसार को मुक्त करने हेतु कुछ काल के लिए मोहिनी स्वरूप विष्णु और शिव जी का संसर्ग हुआ। इसी से जन्मे थे, ‘हरिहर पुत्र’, जिन्हें दक्षिण भारत में ‘अयप्पा स्वामी’ के नाम से जाना जाता है।
भगवान अयप्पा अर्थात अय का अर्थ होता है विष्णु और पा का अर्थ होता है शिव। महिषासुर की बहन महिषी ने ब्रह्मा का तप कर के वरदान लिया था कि उसकी मौत केवल और केवल शिव और नारायण से जन्मे पुत्र से ही हो। तब अपने भाई की मौत (महिषासुर) का बदला लेने के लिए एक घटनाक्रम में उसने माता पार्वती के भंवरी देवी के रूप को कैद कर लिया था तो तब नारायण मोहिनी रूप में और शिव से संतान प्राप्त की जिनका नाम था हरिहर हरी अर्थात विष्णु और हर अर्थात महादेव। उसने महिषी का वध किया और हरिहर को वहां की भाषा में अयप्पा कह के पुकारते है।
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परिचय
भगवान अयप्पा दक्षिण भारत के प्रमुख देवताओं में से एक हैं, जिनकी पूजा विशेष रूप से केरल राज्य के सबरीमाला मंदिर में की जाती है। उनकी कथा, उत्पत्ति और पूजा विधियों का एक समृद्ध इतिहास है, जो शैव और वैष्णव परंपराओं के समन्वय का प्रतीक है।
भगवान अय्यप्पा स्वामी की उत्पत्ति
भगवान अय्यप्पा स्वामी, जिन्हें हरिहरपुत्र के नाम से भी जाना जाता है, हिंदू धर्म में विशेष स्थान रखते हैं। उनकी उत्पत्ति की कथा अद्वितीय है, जो भगवान शिव और भगवान विष्णु के मोहिनी रूप से संबंधित है। .
हरिहरपुत्र: शिव और मोहिनी के पुत्र
पौराणिक कथाओं के अनुसार, भगवान अयप्पा भगवान शिव और भगवान विष्णु के मोहिनी रूप के पुत्र हैं। समुद्र मंथन के दौरान, भगवान विष्णु ने मोहिनी का रूप धारण किया था। इस मोहिनी रूप से भगवान शिव मोहित हो गए, और उनके संयोग से एक दिव्य बालक का जन्म हुआ, जिसे अयप्पा या हरिहरपुत्र कहा जाता है, जो हर (शिव) और हरि (विष्णु) के पुत्र हैं।

पौराणिक कथा और महिषी वध
अय्यप्पा स्वामी के जन्म का मुख्य उद्देश्य महिषासुर की बहन महिषी का वध था। महिषी ने कठोर तपस्या के बाद वरदान प्राप्त किया था कि केवल शिव और विष्णु के संतान द्वारा ही उसका वध संभव है। अय्यप्पा स्वामी ने महिषी का वध कर देवताओं और मनुष्यों को उसके आतंक से मुक्त किया।

पंडालम राजवंश , मणिकंठन और अय्यप्पा स्वामी
पंडालम के राजा राजशेखर और उनकी रानी संतानहीन थे। एक दिन, राजा राजशेखर ने जंगल में शिकार के दौरान एक शिशु को पाया, जिसकी गर्दन में स्वर्ण मणि (मणिकंठन) थी। एक साधु ने प्रकट होकर राजा को बताया कि यह बालक उनके राज्य की समृद्धि और कल्याण का कारण बनेगा। राजा ने बालक को मणिकंठन नाम दिया और उसे अपने पुत्र के रूप में अपनाया।
मणिकंठन की शिक्षा और चमत्कार
मणिकंठन ने अल्पायु में ही वेद, शास्त्र और युद्धकला में निपुणता प्राप्त की। उनके गुरु ने उनकी दिव्यता को पहचाना और समझा कि वे कोई साधारण बालक नहीं हैं। मणिकंठन ने अपने अलौकिक ज्ञान और शक्तियों से राज्य में शांति और समृद्धि स्थापित की।
महिषी का वध और अयप्पा का ध्येय
महिषी का आतंक
महिषासुर की बहन महिषी ने ब्रह्मा से वरदान प्राप्त किया था कि केवल शिव और विष्णु के संयोग से उत्पन्न पुत्र ही उसे मार सकता है। इस वरदान के बाद, महिषी ने देवताओं और मनुष्यों को आतंकित करना शुरू कर दिया।
महिषी का वध
मणिकंठन ने महिषी का वध करके देवताओं और मनुष्यों को उसके आतंक से मुक्त किया। इस विजय के बाद, मणिकंठन ने सबरीमाला में तपस्या करने का निर्णय लिया और वहीं समाधि ली। सबरीमाला मंदिर उसी स्थान पर स्थित है, जहां भगवान अयप्पा ने ध्यान लगाया था।

सबरीमाला मंदिर : एक तीर्थस्थल

मंदिर का स्थान
सबरीमाला मंदिर केरल राज्य के पश्चिमी घाट की पहाड़ियों में स्थित है। यह मंदिर घने जंगलों और पहाड़ियों से घिरा हुआ है, जो इसे एक पवित्र और शांतिपूर्ण वातावरण प्रदान करता है।
तीर्थयात्रा और व्रत
सबरीमाला की तीर्थयात्रा विशेष रूप से मकर संक्रांति के समय महत्वपूर्ण मानी जाती है। भक्तों को 41 दिनों का कठिन व्रत पालन करना होता है, जिसमें ब्रह्मचर्य, सादा जीवन और शुद्ध आहार शामिल हैं। इस व्रत के बाद, भक्त सिर पर इरुमुडी (पवित्र पोटली) लेकर पैदल यात्रा करते हुए मंदिर पहुंचते हैं।
18 पवित्र सीढ़ियाँ
मंदिर तक पहुँचने के लिए भक्तों को 18 पवित्र सीढ़ियाँ चढ़नी होती हैं। इन सीढ़ियों का विशेष महत्व है:
- पहली पाँच सीढ़ियाँ: पाँच इंद्रियों का प्रतीक।
- अगली आठ सीढ़ियाँ: मानवीय भावनाओं का प्रतीक।
- अगली तीन सीढ़ियाँ: गुणों का प्रतीक।
- अंतिम दो सीढ़ियाँ: ज्ञान और अज्ञान का प्रतीक।
मकर ज्योति और मकर विलक्कू
मकर संक्रांति के अवसर पर, सबरीमाला में मकर ज्योति दिखाई देती है, जिसे भगवान अयप्पा की दिव्य ज्योति माना जाता है। इस अवसर पर लाखों भक्त मंदिर में एकत्रित होते हैं और भगवान अयप्पा के दर्शन करते हैं।
सबरीमाला मंदिर की विशेषताएँ
- सभी जाति और धर्म के लोगों का स्वागत: सबरीमाला मंदिर में सभी जाति, धर्म और पंथ के लोग भगवान अय्यप्पा के दर्शन कर सकते हैं, जो समरसता और समानता का प्रतीक है।
- महिलाओं का प्रवेश: परंपरागत रूप से, 10 से 50 वर्ष की आयु की महिलाओं का मंदिर में प्रवेश वर्जित था। हालांकि, समय-समय पर इस परंपरा पर पुनर्विचार किया गया है और कानूनी निर्णयों के माध्यम से इसमें परिवर्तन भी हुए हैं।
- मंदिर का प्रबंधन: सबरीमाला मंदिर का प्रबंधन त्रावणकोर देवस्वोम बोर्ड द्वारा किया जाता है, जो मंदिर की गतिविधियों और तीर्थयात्रियों की सुविधाओं का ध्यान रखता है।
सबरीमाला मंदिर तक पहुँचने का मार्ग
सबरीमाला मंदिर तक पहुँचने के लिए भक्त विभिन्न मार्गों का अनुसरण करते हैं। पारंपरिक मार्ग एरुमेली से होकर जाता है, जो लगभग 61 किलोमीटर लंबा है। यह मार्ग कठिन है और भक्तों को घने जंगलों, पहाड़ियों और नदियों को पार करना होता है। आधुनिक समय में, पंबा से एक छोटा मार्ग भी उपलब्ध है, जो लगभग 5 किलोमीटर लंबा है और अपेक्षाकृत सरल है।
पर्यावरण संरक्षण
मंदिर घने जंगलों और पहाड़ियों के बीच स्थित है, इसलिए पर्यावरण संरक्षण पर विशेष ध्यान दिया जाता है। भक्तों से अनुरोध किया जाता है कि वे पर्यावरण की सुरक्षा का ध्यान रखें और स्वच्छता बनाए रखें।
निष्कर्ष
भगवान अय्यप्पा स्वामी की कथा और सबरीमाला मंदिर की परंपराएँ भारतीय संस्कृति और आध्यात्मिकता का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। यह मंदिर न केवल धार्मिक आस्था का केंद्र है, बल्कि समानता, समरसता और भक्ति का प्रतीक भी है। हर वर्ष लाखों भक्त यहाँ आकर भगवान अय्यप्पा के दर्शन करते हैं और आध्यात्मिक शांति प्राप्त करते हैं।
भगवान अयप्पा की कथा शैव और वैष्णव परंपराओं के समन्वय का प्रतीक है। सबरीमाला मंदिर उनकी दिव्यता, तपस्या और भक्तों की आस्था का केंद्र है। यह मंदिर न केवल धार्मिक महत्व रखता है, बल्कि सांस्कृतिक और सामाजिक समरसता का भी प्रतीक है।